हमारा उद्देश्य

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हमारा उद्देश्य

एक प्रसिद्ध सुधारक ने कहा है – ” शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है दुनिया में बदलाव लाने के लिए  यह महिलाओं को सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।”

इसके विपरीत परिस्थितियाँ भी सत्य हैं और यह हमने ब्रिटिश राज में देखा है और आज भी जारी है। हमारी हज़ारों पुस्तकें समुद्र में फेंक दी गई, हमारी पुरानी सभ्यता एवं सांस्कृति के प्रतीक विश्वविद्यालयों को जला कर राख कर दिया गया। प्राचीन ज्ञान को दिन प्रतिदिन के मुद्दों से निपटने के लिए एक खदिवादी दृष्टिकोण के रूप में देखा जाने लगा। हमे अपने ही सांस्कृतिक इतिहास और हमारे संतों एवं ऋषि मुनियों द्वारा की गई वैज्ञानिक खोजों पर संदेह करने को मजबूर किया गया। पारंपरिक पोशाक की जगह पश्चिमी सूट-बूट ने ले ली जिससे हमारे लोगों के मन में एक भ्रम पैदा हो गया कि हम दुनिया भर की तुलना में हीन हैं |

हमारे ऐतिहासिक गौरव को फिर से बनाने में कुछ तथ्य हमें मदद करेंगे यदि हम इस दिशा में कार्य करते है जो की इस प्रकार है ।

यदि हम इतिहास में जाते हैं तो यह पाते हैं कि हमारी शिक्षा  व्यवस्था में संस्कृत भाषा शिक्षण का माध्यम थी। कल्पना कीजिए कि यह व्यवस्था कितनी वैज्ञानिक थी। संस्कृति हमारी सभ्यता को दर्शाती है। संस्कृत सबसे उपयुक्त शब्द है न सिर्फ पढ़ाने के लिए बल्कि हमारी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए। शिक्षण एवं प्रशिक्षण की भाषा भी संस्कृत है। हमारे गुरुकुल व्यवस्था में एक बालक को कम उम्र से ही अपने गुरुओं एवं शिक्षकों के साथ चौबीस घंटे रहना होता था जहाँ वह बुनियादी मूल्यो से लेकर आजीविका कमाने तक सभी आवश्यक कौशल सीखता था। आश्रम में प्रशिक्षण चौबीस घंटे ही होता था और वर्षों तक शिष्यगण अपने गुरुओं की लगातार निगरानी में पलते थे ताकि उन्हें बाहरी दुनिया की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाया जा सके।

प्रशिक्षण एवं सीखना अविरल एवं कठोर तो था फिर भी आज की तुलना में ज्यादा कठिन नहीं था। किसी भी माहौल में सीखना सहज होता है जहाँ अनुकूल वातावरण हो, ध्येय स्पष्ट हो तथा अनावश्यक विचलन न हो।

औपनिवेशिक इतिहास होने के कारण हमें अंग्रेजी बोलने वाली अधिक आबादी का लाभ भी मिला है जो कि दुनिया को कार्यबल प्रदान करने मे सक्षम है। इसलिए हमें एक बेहतर प्रणाली स्थापित करने के लिए निम्नलिखित कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर बारीकी से ध्यान देने की आवश्यकता है।

हमारा ध्यान निम्नलिखित पर होना चाहिए।

एक ऐसी व्यवस्था विकसित की जाए जहाँ उचित व्यवहारिक एवं तकनीकी ज्ञान हमारी नियमित शिक्षा का हिस्सा हो, नाकि सिर्फ एक कागज़ी व्यवहार बन कर रह जाए।

छात्रो के पास नौकरी एवं व्यवसाय को चुनने के विकल्प हों। जैसे ही वह कॉलेज से बाहर आएँ क्योकि वे अब कौशलपूर्ण होंगे , उनके पास डिग्री या डिप्लोमा तो होगी लेकिन बिना किसी व्यवहारिक अनुभव के।

हस्तकला एवं संबंधित कौशल को स्कूल एवं कॉलेज की नियमित शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिए, एक रोजगार के विकल्प के तौर पर।

छात्र के शुल्क देने की क्षमता से ज्यादा उसके ज्ञान एवं प्रतिमा का मूल्य होना चाहिए।

विषय की अच्छी समझ के लिए, व्यक्तिवादी पढ़ाई को बढ़ावा मिलना चाहिए, भीड़ भाड़ वाली कक्षा में पढाई की बजाए।

हम व्याख्यान और शिक्षण, स्मरण एवं प्रशिक्षण, डिग्री आधारित और रोज़गार आधारित शिक्षण में अन्तर करना चाहते हैं ।