शिक्षा केवल सिद्धांत तक ही सीमित नहीं थी बल्कि यह व्यवहारिक और आदर्शवादी भी थी। सही गुरू को पाना एक विलासिता समझी जाती थी परन्तु फिर भी यह बात समाज में एक व्यक्ति के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण थी
आज हमारे यहाँ शिक्षकों, विद्यार्थियों और शैक्षणिक संस्थानों की कोई कमी नहीं है, फिर भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि क्या हम एक, समाज, राष्ट्र और मानव जाति के रूप में प्रगति कर रहे हैं या हम अपना दोष अगली पीढ़ी पर डाल रहे हैं जिसे हमने उसके वास्तविक, विकास के लिए अनुकूल शिक्षा का कोई ठोस आधार नहीं दिया है। क्या हम एक स्वस्थ तथा खुशहाल समाज बनाने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं या फिर डिग्री एवं डिप्लोमा हासिल करने की होड़ को बढ़ावा दे रहे हैं ?
ऐसे सैंकड़ों अस्पष्टता भरे प्रश्न हैं जिन पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है ।
हम बेहतर वर्तमान और भविष्य के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए मदान विचार रखने वाले सभी लोगों का आह्वान करते है।
हमारा लक्ष्य उन वास्तविक मुद्दों को प्रदर्शित करना है जो कई दशकों से हमारी शिक्षण प्रणाली में देखे गए तथ्यों पर आधारित है।
ढीली अमन नीति तथा सभी अगली कक्षा में उतीर्ण करने से हमारी व्यवस्था खराब हो गई है और प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। आज 90 - 95 प्रतिशत अंक हासिल करना परीक्षा में कोई बड़ी बात नहीं है तो प्रश्न यह उठता है कि जो औसत दर्जे के अंक प्राप्त करते हैं या उससे नीचे, उनका क्या होगा ? अकों एवं यादाश्त आधारित परीक्षा प्रदर्शन ने भविष्य कें रोज़गार संबंधित विकल्पों की संभावनाओं को पंगु बना दिया है।
कक्षाएँ भीड़ भाड़ से युक्त हैं तथा शिक्षक एवं छात्रो का संकाय अच्छा नहीं है, जो कि सिर्फ सतही तौर पर शिक्षा को अंजाम दे रहा है। विषय के प्रति छात्रों की रुचि दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। किसे दोष दिया जाए ? शिक्षकों को, छात्रों, शिक्षा नीतियाँ या फिर समाज और माता - पिता को ?
हमारी उच्च माध्यमिक शिक्षा प्रणाली प्राथमिक तौर पर छात्रों को सिर्फ 3 विकल्प देती हैं| कला, विज्ञान एवं वाणिज्य। व्यवसाय प्रबंधन एक विकल्प के तौर पर कुछ ही वर्षों पहले शामिल किया गया है। कुछ और विषयों के साथ। लेकिन आजीविका के विभिन्न पहलुओं को पूरा करने वाले ऐसे सैकड़ों विकल्प हो सकते हैं जिन की कभी बात नहीं की जाती। ऐसा क्यों ?
माता पिता को बेहतर उम्मीदें है जो इन बिकी पैसा कमाने वाले निजी कोचिंग सेंटर के सफलता के झूठे वायदे पर आधारित है।
यह हतोत्साहित करने वाला तथ्य है कि भविष्य अनिश्चित बना हुआ है और हमारा युवा चिंताग्रस्त है। हमारे देश में औपचारिक पढ़ाई के पीछे 15 साल निवेश करने के बावजूद शिक्षक एवं विद्यार्थियों के पास सफलता का कोई निश्चित सुराग नहीं है।
हालांकि यह देखने में बहुत अच्छा लगता है कि हर रोज नए स्कूल एवं कॉलेज, शिक्षको, छात्रों एवं शिक्षण संस्थानों की संख्या मे वृद्धि हो रही है तो फिर शिक्षा का स्तर क्यों विपरीत दिशा में जा रहा है ?
वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारे छात्रो को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षित नहीं करती है । इन परीक्षाओं के लिए माता-पिता को विशेष रूप से बनाई गई बाहरी कोचिंग का सहारा लेना पड़ता है। इससे JEE, NEET, CA, CS के लिए निजी शिक्षण को बढ़ावा मिलता है। माता - पिता और विद्यार्थियो को अतिरिक्त समय, धन, मेहनत और शुल्क खर्च करना पड़ता है जिसके परिणाम की भी कोई गारंटी नहीं है। क्या शुल्क, दान और पात्रता मापदंड पर कुछ सख्त नीतियाँ नहीं होनी चाहिए?
राष्ट्रीय उच्चतम आकलन एवं ऑनलाइन समीक्षा एक पागलपन सा बन गया है। शिक्षण संस्थानों का आंकलन छात्रों द्वारा अर्जित अंको पर आधारित होने के कारण यह संस्थान अनुचित अंक देते हैं ताकि नतीजे अच्छे दिखाई दें। इससे वो शिक्षण की दुनिया में झूठा नाम कमाते हैं और इससे ज्यादा से ज्यादा छात्र आकर्षित होते हैं। ज्यादा छात्रो से ज्यादा शुल्क और कमाई होती है जो कि शिक्षण माफिया के धन एकत्रण का कारण बनती है। सामाजिक संचार की भूमिका यहाँ संदिग्ध हो रही है।
लाखो रुपये एवं हजारो घंटों के खर्च के बाद भी जब निजी शिक्षण संस्थानों में विषय को अनुकूल तरीके से पढ़ाया नहीं जाता तो इससे छात्रो पर परीक्षा को उत्तीर्ण करने दबाव बढ़ जाता है। छात्रों में अत्यधिक चिन्ता बढ़ जाती है एवं अवसाद उत्पन्न होता है। कुछ अत्यधिक संवेदनशील छात्र तो आत्महत्या तक का रास्ता चुन लेते हैं।
जब समाज भौतिक लाभ को ही अपना प्रमुख लक्ष्य बना लेता है और अपने सभी संसाधन अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा देता है तो परिवार, समाज तथा राष्ट्र का विघटन दूर नहीं होता जिससे हमारी प्रचलित शिक्षा प्रणाली से सम्बंधित सोच समझ एवं नीतियों पर सवाल उठते हैं |
हम एक समाज के रूप में ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा कोको अग्रिम पंक्ति में लाने और योग्य लोगों को उनके सर्वोच्च सम्मान से पुरष्कृत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं |
आइये हम सब मिलकर आवश्यक सुधार लाने को एकजुट हों और सर्वोत्तम मष्तिस्क को खिलने का मौका दे कर देश को गौरान्वित करें |